Tuesday, 18 January 2022

Career In Space Science: क्या है स्पेस साइंस? जानें यहां कैसे बनाएं शानदार करियर

What is Space Science: आप ब्रह्माण्ड के रहस्य सुलझाना चाहते हैं, तो इस फील्ड में आपके पास करियर बनाने के ऑप्शन हैं।

आज का दौर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी का है। इसके कारण जमीन से लेकर आसमान तक पहुंचना आसान बना दिया है। साथ ही इस टेक्नोलॉजी के कारण युवाओं के लिए नए-नए करियर विकल्प भी खुल रहे हैं, इन्हीं में से एक है स्पेस साइंस। अगर आपको भी अनंत आकाश अपनी ओर आकर्षित करता है और आप ब्रह्माण्ड के रहस्य सुलझाना चाहते हैं, तो इस फील्ड में आप अपना शानदार करियर बना सकते हैं।

आज के समय में भारत का अंतरिक्ष प्रोग्राम बहुत विकसित हो गया है। इस समय भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) न केवल भारत का उपग्रह अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक स्थापित कर रहा है, बल्कि वह विकसित देशों के उपग्रह भी नियमित रूप से अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक भेज रहा है। जिसके कारण यहां के युवा वैज्ञानिकों के लिए भारतीय व विदेशी अंतरिक्ष विज्ञान के दरवाजे खुलने लगे हैं।

क्या है स्पेस साइंस?

‘स्पेस साइंस’ साइंस की वह शाखा है, जिसके अंतर्गत पृथ्वी से परे करोड़ों ग्रहों, उपग्रहों, तारों, धूमकेतुओं, आकाशगंगाओं एवं अन्य अंतरिक्षीय पिंडों का अध्ययन किया जाता है। इसके अलावा स्पेस साइंस के अंतर्गत उन नियमों एवं प्रभावों का भी अध्ययन किया जाता है, जो इन्हें संचालित करते हैं। अंतरिक्ष विज्ञान में करियर उन हजारों रहस्यों से पर्दा उठाने का अवसर भी होता है, जो अभी तक अनसुलझे हैं। यह न केवल वैज्ञानिक स्वभाव की परीक्षा होती है, बल्कि आपकी जिज्ञासाएं भी स्तर-दर-स्तर शांत होती जाती हैं।

स्पेस साइंस में करियर का शानदार ऑप्शन 

स्पेस साइंस या स्पेस टेक्नोलॉजी बेहद व्यापक फील्ड है। इसके तहत एस्ट्रोनॉमी व एस्ट्रोफिजिक्स, प्रामेट्ररी एटमॉस्फेयर और एयरोनॉमी, अर्थ साइंस और सोलर सिस्टम का कोर्स कराया जाता है। आज के दौर में स्पेस साइंस की कई सब-ब्रांचेज भी हैं। इनमें से मुख्य है कॉस्मोलॉजी, स्टेलर साइंस, प्लेनेटरी साइंस, एस्ट्रोनॉमी, एस्ट्रोलॉजी आदि। साइंस और इंजीनियरिंग की ये शाखाएं अंतरिक्ष के चारों तरफ घूमती हैं। इस आर्टिकल के माध्यम से आइए उन विभिन्न करियर पर एक नज़र डालते हैं जिन्हें आप चुन सकते हैं।

1. एस्ट्रोनॉमी 

एक एस्ट्रोनॉमी का कार्य आउटर स्पेस का रिसर्च करना है। इसमें आकाशगंगा, सौर मंडल, तारे, ब्लैक होल, ग्रह आदि शामिल होता है। जिस पर रिसर्च कर एस्ट्रोनॉमी यहां पर होने वाली घटनाओं का पता लगाते हैं।

2. एस्ट्रोनॉट 

ये वे खास लोग होते हैं, जो अंतरिक्ष में कदम रखकर अपने सपनों को पूरा करते हैं। ये स्पेस स्टेशन पर रहकर विभिन्न रिसर्च करते हैं। इनका कार्य बहुत मुश्किल होता है। इन्हें स्पेस स्टेशन में महीनों रहना पड़ता है।

3. स्पेस टेक्नोलॉजी 

स्पेस टेक्नोलॉजी का करियर भी बेहद शानदार होता है। इसमें स्पेसक्रॉफ्ट, सेटेलाइट, स्पेस स्टेशन, स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर इक्यूमेंट और स्पेस वॉर में शामिल होने वाले विभिन्न इक्यूमेंट को डिजाइन करने का कार्य होता है।

4. इंजीनियरिंग 

एक एस्ट्रोनॉट लोगों के बीच ज्यादा पॉपुलर हो सकता है, लेकिन एक इंजीनियर स्पेस रिसर्च में पूरे अभियान की जान होता है। ये अभियान से जुड़े सभी इक्यूमेंट का डिजाइन करते हैं। इन इंजीनियरों के लिए एयरोस्पेस, रोबोटिक्स (थिंक मार्स रोवर्स), कंप्यूटर इंजीनियरिंग, मटेरियल साइंस के साथ ही मैकेनिकल और टेलीकॉम इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में अपार संभावनाएं हैं।

5. स्पेस रिसर्च 

स्पेस रिसर्च में विभिन्न फील्ड के लोग शामिल होते हैं। जैसे- एस्ट्रोफिजिसिस्ट (खगोलविद जो खगोलीय पिंडों का अध्ययन करते हैं), बायोलॉजिस्ट (ये स्पेस में रहने पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करते हैं), बायोकैमिस्ट और बायोफिजिसिस्ट (सभी तरह के रासायनिक और भौतिक पहलुओं को देखते हैं), जियोलॉजिस्ट (पृथ्वी की भौतिक प्रकृति का अध्ययन और विश्लेषण) और एस्ट्रोबायोलॉजिस्ट (दूसरे ग्रहों पर जीवन के संभावना का अध्ययन करते हैं) यह सभी स्पेस साइंटिस्ट के उदाहरण हैं। रिसर्च के अलावा भी कई विकल्प हैं, जैसे आप अंतरिक्ष भौतिकी के एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में काम कर सकते हैं और अंतरिक्ष यान से प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण में भी शामिल हो सकते हैं। 

6. स्पेस लॉ  

यह अंतरिक्ष से संबंधित गतिविधियों को नियंत्रित करने वाला लॉ है। इसमें समझौतों, सम्मेलनों, संधियों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के नियमों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। आज के समय में जिस तरह स्पेस में भीड़ बढ़ रही हे, उसको देखकर स्पेस लॉ में करियर के ऑप्शन बढ़ते जा रहे हैं।

7. स्पेस टूरिज्म  

यह सबसे तेजी से उभरता हुआ टूरिज्म है। इस फील्ड में कई नई कंपनियां आ रही हैं। यहां पर करियर बनाने का शानदार मौका है। आज के समय में इस क्षेत्र में लगे कुछ बड़े खिलाड़ी वर्जिन गेलेक्टिक, स्पेसएक्स, ब्लू ओरिजिन, ओरियन, ओरियन स्पैन (स्पेस होटल) और बोइंग हैं।

8. स्पेस आर्किटेक्ट 

इसे भविष्य का जॉब कहा जा सकता है। जिस तरह से स्पेस टूरिज्म बढ़ रहा है, उससे स्पेस आर्किटेक्ट की जरूरत पड़ने लगी है। इनका कार्य स्पेस में रहने के लिए योग्य वातावरण पर रिसर्च करना और डिजाइन तैयार कर निर्माण करना है। कुछ कंपनियों का निकट भविष्य में अंतरिक्ष होटल बनाने की योजना है।


9. स्पेस मेडिसिन 

इनका कार्य आउटर स्पेस से लौटने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव पर रिसर्च करने के साथ उनका इलाज करना है। इसके एक बड़े हिस्से में जीरो ग्रेविटी के कारण वेटलेसनेस और मनोवैज्ञानिक प्रभाव के कारण होने वाले शारीरिक परिवर्तनों पर रिसर्च होता है।



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Sunday, 9 January 2022

जानिए डॉ. हरगोविंद खुराना के बारे में: वह वैज्ञानिक जिसने डीएनए को किया था डिकोड!

 साल 1968 में, भारतीय मूल के एक बायोकेमिस्ट को मार्शल डब्ल्यू निरेनबर्ग और रॉबर्ट डब्ल्यू होले के साथ ‘जेनेटिक कोड’ पर उनके काम के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मॉलिक्यूलर बायोलॉजी के क्षेत्र में यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी। इस वैज्ञानिक का नाम था हरगोविंद खुराना (Dr. Hargovind Khurana)! 

हरगोविंद खुराना का जन्म ब्रिटिश भारत में 9 जनवरी, 1922 को पंजाब के छोटे से गाँव रायपुर (अब पूर्वी पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता, गणपत राय खुराना पटवारी का काम करते थे और उनकी माँ कृष्णा देवी खुराना एक गृहणी थीं। पाँच भाई-बहनों में से एक हरगोविंद की प्रतिभा को उनके माता-पिता ने बचपन में ही पहचान लिया था। इसलिए आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी न होने के बावजूद उनके माता-पिता ने उन्हें पाकिस्तान के मुल्तान में डीएवी हाई स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा। 

नोबल पुरस्कार जीतने के बाद डॉ. खुराना ने अपनी आत्मकथा में लिखा था, “गरीब होते हुए भी मेरे पिता अपने बच्चों की शिक्षा के लिए समर्पित थे और 100 लोगों के गाँव में एकमात्र हमारा ही परिवार था, जो शिक्षित था।”

अपनी शुरुआती शिक्षा उन्होंने गाँव के स्कूल से ही की। पर पढ़ाई में अच्छा होने की वजह से उन्हें कई छात्रवृत्तियाँ मिली। इन्हीं छात्रवृत्तियों के सहारे उन्होंने 1945 में पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर से रसायन विज्ञान (केमिस्ट्री) में स्नातक और मास्टर डिग्री हासिल की। इसके बाद विज्ञान में उनकी असाधारण प्रतिभा को देखते हुए, स्थानीय ब्रिटिश प्रशासन ने उन्हें यूनाइटेड किंगडम में यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल से पीएचडी फेलोशिप प्रदान की। 

साल 1948 में अपनी पीएचडी के बाद खुराना (Dr. Hargovind Khurana) ने एक साल तक स्विट्जरलैंड के ईटीएच ज्यूरिख में एक पोस्ट-डॉक्टरल पद पर काम करते हुए क्षारीय रसायन क्षेत्र (alkaloid chemistry) में अपना योगदान दिया। इसके बाद वे अपने वतन लौटे। लेकिन उस वक़्त भारत विज्ञान के क्षेत्र में इतना आगे नहीं बढ़ा था और इसीलिए खुराना को यहाँ उनकी योग्यता अनुसार कोई नौकरी नहीं मिली।

खुराना रासायनिक विज्ञान के क्षेत्र में बहुत कुछ करना चाहते थे और इसलिए न चाहते हुए भी वे वापिस ब्रिटेन चले गये। यहाँ उन्होंने साल 1952 तक एलेक्जेंडर आर. टोड और जॉर्ज वालेस केनर के साथ ‘पेप्टाइड्स और न्यूक्लियोटाइड्स’ पर काम किया। इसके बाद वे अपने परिवार के साथ कनाडा चले गये और यहाँ उन्हें ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय में नौकरी मिली। कुछ वर्षों बाद, खुराना ने बायोकेमिस्ट्री में पहले सिंथेटिक जीन का निर्माण किया। विज्ञान के क्षेत्र में यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी। खुराना के इस शोध ने भविष्य के वैज्ञानिकों को भी अनुवांशिकी विज्ञान के क्षेत्र में काम करने का एक केंद्रबिंदु दे दिया। उनके द्वारा किये गए इस अनुवांशिकी शोध की चर्चा पूरे विश्व में होने लगी और उन्हें कई पुरस्कार व सम्मानों से भी नवाज़ा गया। साल 1960 में डॉ. खुराना को कैनेडियन पब्लिक सर्विस ने उनके काम के लिए गोल्ड मैडल दिया। 

1960 में ही वे कनाडा से अमेरिका चले गये। यहाँ उन्होंने विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ एन्ज़ाइम रिसर्च में एक प्रोफ़ेसर की नौकरी की और साल 1966 में उन्हें अमेरिकी नागरिकता मिल गयी।

डॉ. खुराना ने अपने दो साथियों के साथ मिलकर डी.एन.ए. अणु की संरचना को स्पष्ट किया था और यह भी बताया था कि डी.एन.ए. प्रोटीन्स का संश्लेषण किस प्रकार करता है। जीन का निर्माण कई प्रकार के अम्लों (acid) से होता है। खोज के दौरान उन्होंने पाया कि जीन, डी.एन.ए. और आर.एन.ए. के संयोग से बनते हैं। अतः इन्हें जीवन की मूल इकाई माना जाता है। इन अम्लों में ही आनुवंशिकता (heredity) का मूल रहस्य छिपा हुआ है।


उनके इस शोध कार्य ने ही ‘जीन इंजीनियरिंग’ यानी कि ‘बायोटेक्नोलॉजी’ की नींव रखी और इसके लिए उन्हें नोबल पुरस्कार मिला।  इस शोध कार्य के बाद उन्हें साल 1971 में विश्व के प्रसिद्द संस्थान मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) के साथ काम करने का मौका मिला।  नोबल पुरस्कार के अलावा भी डॉ. खुराना को बहुत से सम्मान मिले, जिनमें डैनी हैंनमेन अवार्ड, लॉसकर फेडरेशन पुरस्कार, लूसिया ग्रास हारी विट्ज पुरस्कार आदि शामिल हैं। भारत सरकार ने भी डॉ. खुराना को पद्मभूषण से सम्मानित किया था। इन सम्मानों के आलावा उन्हें सम्मानित करने के लिए वोस्कोंसिन-मेडिसिन यूनिवर्सिटी, इंडो-यूएस साइंस एंड टेकनोंलॉजी और भारत सरकार ने साथ मिलकर साल 2007 में खुराना प्रोग्राम की शुरुआत की। 

साल 2011 में 9 नवंबर को 89 साल की उम्र में डॉ. खुराना ने अपनी आखिरी सांस ली। डॉ. खुराना तो चले गये लेकिन अपने पीछे एक महान विरासत छोड़ गये, जिसे आज उनके छात्र आगे बढ़ा रहे हैं। उनके शोध कार्यों की भूमिका पर आज भी रसायन विज्ञान में महत्वपूर्ण शोध हो रहे हैं।


भारत के इस अनमोल रत्न को हमारा नमन!


मूल लेख: रिनचेन नोरबू वांगचुक

https://hindi.thebetterindia.com/10590/dr-hargovind-khurana-scientist-dna-india/


विश्व हिंदी दिवस के अंतर्गत प्रश्नोत्तरी (कक्षा 6-12)

विश्व हिंदी दिवस के अंतर्गत प्रश्नोत्तरी (कक्षा 6-12)